परमजीत कुमार/देवघर. हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व है. प्रत्येक माह में दो प्रदोष व्रत होते हैं. एक कृष्ण पक्ष तो दूसरा शुक्ल पक्ष में होता है. इस तरह साल में 24 प्रदोष व्रत होते हैं. लेकिन, इस साल 26 प्रदोष व्रत का संयोग बन रहा है. इस साल सावन माह में अधिकमास पड़ने के कारण सावन 2 माह का हो गया. ऐसे में 2 प्रदोष व्रत भी बढ़ गए हैं.
वहीं देवघर के ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस व्रत में मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है. देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित नंद किशोर मुदगल ने बताया कि अधिक मास का दूसरा प्रदोष व्रत 13 अगस्त दिन रविवार को पड़ रहा है. रविवार पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत कहा गया है. इस साल 19 साल के बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बना है कि सावन में मलमास लगा है. ऐसे में इस प्रदोष व्रत का महत्व दोगुना हो गया है.
आगे बताया कि रवि प्रदोष के दिन व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा आराधना करनी चाहिए. साथ ही इस दिन रात मे चंद्रमा को अर्घ्य जरूर दें. इससे ग्रहों का दुष्प्रभाव कम होता है. रवि प्रदोष के दिन भगवान शिव पर एक मुट्ठी गेहूं अर्पण करें. साथ ही पूर्व दिशा की ओर मुख कर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें. इससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है.
क्या है शुभ मुहूर्त :
मलमास या अधिक मास का आखरी प्रदोष व्रत 13 अगस्त दिन रविवार को सुबह 8 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ हो रहा है. इसका समापन अगले दिन 14 अगस्त सोमवार को दिन के 10 बजकर 20 मिनट पर होने वाला है. क्योंकि प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है, इसलिए इसमें उदया तिथि नहीं मानी जाती है. इसी कारण 13 अगस्त को ही मलमास या अधिकमास का आखिरी प्रदोष व्रत है. वहीं ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि पूजा करने का शुभ मुहूर्त संध्या 7 बजकर 09 मिनट से लेकर रात 9:00 बजे तक है.
.
FIRST PUBLISHED : August 12, 2023, 14:54 IST